पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४५२

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जम-दम सौं तौ भाजि भभरि चले ही उत, कम जमुना की नाहिँ जातना-मनाली पै। कहै रतनाकर पुरैहै अभिलाष भूरि, पहुँचत ताके पूर कठिन कुचाली पै॥ घाँटिबौ परैगी दाप दुसह दवानल को, ओटिबो परैगौ गिरि देह सुखपाली पै । घर घर गोरस को जाँचिवौ परैगो, अरु नाचिबौ परैगा काली नाग की फनाली पै ॥३॥ देत जमराज सौं दुहाई जमदूत जाइ, जमुना प्रताप-ज्वाल जग यौँ बगारी है। कहै रतनाकर न फटकन पावें पास, चटकन लागै चट पाँसुरी-पत्यारी है। पापिनि के पातक पहार सब जारे देति, बसती उजारे देति इमकि हमारी है। तपन-तनूजा जल-रूपहू भई तो कहा, अगिनी अनूप यह भगिनी तिहारी है ॥४॥ मुक्ति-खानि पानिप निहारि स्वाति-टेक मरि, पीउ पीउ धुनि के पपीहा सार पारै है कहै रतनाकर त्यै बायस अघाइ नीर, पाइ बलि-पायस को आयस नकार है ।