पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४५४

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जम जमुना की हौड़ निज निज काजनि मैं, सकल समाजनि मैं बिसमय छावै हैं। कहै रतनाकर करत एक जाँच भाल, एक पै अजाँच बिन जाँच ही बनावै है।। न्याय ही जराबैं दुहूँ संतति तपाकर की, एक मातरा को भेद कान पै बँटावै है। जम तो जराचे दापि पापिनि समूहनि को, पापनि समूहनि को जमुना जरावै है ॥८॥