पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४६६

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साधु-माधुरी-गान पान रोचक सुखदाई। खल-दल-तीछन भाइ राय चटनी मिरचाई ॥ श्री तुलसिदास जस चारु चिर लह्यौ बिसद कविता अजिर । स्तुतिधार रसिकनि-हित रुचिर थापि भूरि भंडार थिर ॥६॥ कविता-सृष्टि उदार-चारु-रचना-बिरंचि बर। भक्ति-भाव-प्रतिपाल-बिस्नु मद-मोह-आदि-हर ।। बोध-बिबुध-बिबुधेस सेस-ध्रुव-धर्म-धराधर । सब्द-सिंधु-बर-बरुन अर्थ-धन-धान्य-धनाकर ॥ भ्रम-बिटप-प्रभंजन कुमति-बन-अगिन तेज-रबि सुजस-ससि । गुनि तुलसिदास सब-देव-मय प्रनवत रतनाकर हुलसि ॥७॥