पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४७४

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ग्वाल बाल गहकि गुपाल के जुरे हैं इत, उत ब्रज-बाल राधिका की चलि आ4 हैं। कहै रतनाकर करत जल-केलि सबै, तन मन जीवन की पनि सिरावै हैं॥ कर पिचकीनि हचकीनि सौं हथेरिनि की, छी चहुँ कोद छाइ मोद उपजाबैं हैं। मंजु मुख मोरि मुलकावति दृगंचल कौं, अंचल के ओट चोट चंचल चलाबैं हैं ॥८॥