पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४८

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असद काव्य औ सम्मति मैं , यह कठिन न्याव अति, बुद्धि-रंकता अधिक प्रकासत कौन, धीरमति पै दोउ दोषनि मैं, बरबस अकुतैबौ चित काँ न्यून हानिकारक सुबिबेकहिँ बहकावन सौं ॥ चूकत वामैं कछु एक यामैं अनेक हैं: दूषित दूषन देत दौरि दस लिखत एक हैं। कूर कोऊ इक बेर जगत मैं निजहिँ हँसावे, पै कुपद्य कौँ एक गद्य मैं किते बनावै ॥