पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४८०

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गावे गीत सरस बजावे मिलि ताल सवै, छैलनि की छाती काम-तापनि तचाबें हैं। घूमि घूमि चारों ओर कटि-तट दूमि दूमि, झुकि झुकि झूमि झूमि झूमर मचावें हैं ॥५॥ . बिसद बहार कार-राका की निहारि कूल, भूलि गति जमुना-प्रवाह जकि ज्वै रह्यो । कहै रतनाकर त्यौँ प्रकृति समाजनि की, सुखमा अमंद सौं अनंद-रस च्चै रह्यो । चंद-बदनीनि-संग रास ब्रज-चंद रच्यो, छवि के प्रकास सौं अकास लगि छ्बै रहयौ । चेत चलिवे की षट मास लौं न आई इमि, एते चंद चाहि चंद चकपक है रह्यौ ॥६॥ पद थरकाइ फरकाइ भुजमूल भरी, मंद मुसकानि भाँह तानि तमकति हैं। लंक लचकाइ चल अंचल उचाइ लोल, कुंडल कपालनि झुमाइ झमकति हैं। स्वेद-सनी-बदन मदन-सुख-देनी बर, बेनी बाँधि किंकिनी सहाँस हमकति हैं। करति अलाप स्याम-संग ब्रज-बाम मंजु, मेघ-मेखला मैं चंचला सी चमकति हैं ॥७॥