पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४८७

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सिसिर खिलारी भयो मिसिर मदारी महा, करतब आपनी अनूपम उघारै है। कहै रतनाकर अखिल हरियारी पर, कलित कपूर-धूर विसद बगारै है॥ पावक पै कि कै प्रभाव निज पानी करे, पानी की परसि पल उपल सुधारै है। प्रबल-प्रचार सीतकार की करामत सौं, भानु कौँ पलटि सीत-भानु करि डार है ॥३॥ छायौ इमि सिसिम्-अतंक महि-मंडल में, अंक माहि संकित न बाल ठुनकत है। कहै रतनाकर न बिकसत बोल नैकु, कोकिल न कुजत न भौर गुनकत है । इमि हिम-गाला बरसत चहुँ ओरनि त, ताको कहि आवत कसाला-गुन कत है। सीत-भीत अतुल तुलाई करिव को मना, धुनक विधाता तृल-धाप धुनकत है ॥४॥ है कै भय-भीत सीत प्रवल प्रभावनि सौं, पाला माहि मेदिनी सुगात निज ग्वै रही । कहै रतनाकर तपाकर कौं चंद जानि, मानि सुख चकई-बियोग-ताप म्वै रही ॥