पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४९८

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(१) श्री कृष्ण-दूतत्व बोधन के काज जदुराज दुरजोधन कौं, पाँचौ महाजोधनि के मत सुनि ठानी कहै रतनाकर मिलाप के अलाप हेत, आप चलिबे की चारु चाह चित आनी एते माहिँ द्रौपदी दुखारी दुरी दीठि परी, सारी संधि साधन की साध सिथिलानी सानी कछु आँस मैं उसास मैं उड़ानी कछु, छूटे केस-पास मैं उसेस अरुझानी