पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५०२

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(२) भीष्म प्रतिज्ञा भीषम भयानक पुकारयौ रन-भूमि आनि, छाई छिति छत्रिनि की गीति उठि जाइगी। को रतनाकर रुधिर सौं रुधैगो धरा, लोथनि पै लोथनि की भीति उठि जाइगी ।। जीति उठि जाइगी अजीत पंडु-पतनि की, भूप दुरजोधन को भीति उठि जाइगी। कैतो प्रीति-रीति की सुनीति उठि जाइगी के, आज हरि-प्रन की प्रतीति उठि जाइगी ॥१॥ पारथ बिचारी पुरुषारथ करेगा कहा, स्वारथ - समेत परमारथ नसैहाँ मैं। कहै रतनाकर प्रचारयौ रन भीषम याँ, आज दुरजोधन-दुख दरि दैही मैं ॥ पंचनि के देखत प्रपंच करि दुरि सवै, पंचनि को स्वत्व पंचतत्त्व मैं मिलैहौँ मैं। हरि-प्रन-हारी-जस धारि कै धरा है सांत, सांतनु को सुभट सपूत कहवैहाँ मैं ॥२॥