पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५२०

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प्रबल प्रताप की सुढार तरवार-धार, जमन-कुचक्र खर सान सौं धराई है। धीर महिषी के उर-ताप मैं तपाई अरु, बालक-अधीर-नैन-नीर मैं बुझाई है ॥१०॥ बद्दल से ब्यूह मुगलद्दल के जूह डाँटि, काटि काटि ठाटनि उघाटि बाट लीन्ही है। कहै रतनाकर यौँ पैठत सबेग जात, ताकी फहराति धुजा परति न चीन्ही है ॥ केहरि लौ हेरत अहेर निज सौहैं हरि, फेर चारु चेतक दरेर नैं कु दीन्ही है। सुंडी के भुसुंड पै उभारि कै अगों हैं पाइ, मानी मानसिंह पै प्रचारि वार कीन्ही है ॥११॥