पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५२१

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(६) छत्रपति शिवाजी हिंदू-बेष धारन मैं सूथन पँवारन मैं, डाढ़ी के उजारन मैं दौरे लगे जात हैं। कहै रतनाकर चपल यौँ चले हैं धाइ, मानौ पाय धरत धरा पै दगे जात हैं । मुख नवरंग के न रंग एक हूँ है रह्यौ, छाँड़े संग आपने बिगाने सगे जात हैं। साहसी सिवा के बाँके हल्ला को धड़ल्ला देखि, अल्ला अल्ला करत मुसल्ला भगे जात हैं ॥१॥ दच्छिन मैं जानि कै बिकट जमराज-राज, सूबा लेन को सो मनसूबा ना ठहत कहै रतनाकर अमीर रनधीर किते, त्यागि समसीर बाट हज्ज की गहत हैं । कसि कसि बाँधै फैट भेंट करिबे का प्रान, छाने तऊ सूथन ठिकाने ना रहत हैं। सरजा सिवाजी की सबेग तेग-बाजी चाहि, गाजी गजनी के रनसाजी ना चहत हैं ॥२॥