पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५२४

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बीजापुर दिल्ली गोलकुंडा आदि खंडनि मैं, अमल अखंड कल कीरति विभाजी है। कहै रतनाकर नगर गढ़ ग्राम जिते, तेते अधिकार में सुधारि सुभ साजी है । मात-भूमि भक्ति सक्ति अविचल साहस की, सहित प्रमान प्रतिपादि छिनि छाजी है। राना मूल-मंत्र जो स्वतंत्रता प्रकास किया, ताको महाभास कियो सरजा सिवाजी है ॥८॥ मान के विरुद्ध सनमान मानि क्रुद्ध भयो, अानन पै आनि भाव उद्धत बिराजे हैं। कहै रतनाकर से चंड सरजा को रूप, देखि म्लेच्छ मंडल उदंड छोभ छाजे हैं निकसत वैन औ न विकसत नैन भए, अकवक साह साहजादे खान खाजे हैं। भूले अवसान मान गौरव-विधान सबै, कौरव-सभा में जदुराज जनु गाजे हैं ॥९॥