पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५२९

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खड्ग-सुवा सौँ मेद-मज्जा-स्रौन आहुति दै, प्रज्वलित जुद्ध-बिकराल-ज्वाल कीन्ही है। देस-भक्ति-बेदी पै स्वतंत्रता को मंत्र साधि, पूत पंच पूतनि की पंच बलि दीन्ही है ॥१०॥