पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५३४

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(८) श्रीमहारानी दुर्गावती दुर्ग में तड़प नड़िता सी नड़के ही कढ़ी, कड़कि न ए कड़वाहूँ अबै मुरगा। को रतनाकर चलावन नगी यो बान, मानों कर फैले फफुकारी मारि उरगा । यासा छोड़ि पान की अमान की दुरासा मॉड़ि, भागे जान गम्बर अकबर के गुरगा। देवी दुरगावनी मलेच्छ-दन गेरे देति, मानौ दैत्य-दलनि दर देति दुरगा ॥१॥ , देवी दुग्गावती के धावत मलेच्छ-सेन, फाटे चली फेन लॉ की ना हरकह कहै रतनाकर निहारे का मंगा 4, ऐसे रन-ग ना विचारे नरकह में । चरबन चाहि जाहि आया चढ़ि आसफ खाँ, ताकी कठिनाई ना लखाई करका में । एती रन-विमुख मलेच्छनि-झमेला भरथी, मेला भरची माची ठेलठेला नरकर मैं ॥२॥