पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५३६

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पुनि कहि दुर्ग ते कृपान दुरगावति लै, दुष्टनि पै मष्ट है अपार वार घाली है। धोखें रहैं हेरत त्रिदेव जिय जोख यहै, यह कमला है, कै गिरा है, किधों काली है ॥५॥ , जाके रन धावत प्रचारि तरवारि धारि, धमकि धराधर समेत धरा धूजी है। कहै रतनाकर उमंडि निहिं ओर जाति, ताही और लुडमुंड होत अँड मूजी है ॥ देवी दुरगावती बजाइ सैफ आसफ साँ, हर के हियै की हरपाइ हाँस पूजी है । जोगिनी कह को यह जागिनी नई है अहो, चंडी कहै चंडी को प्रचंडी यह दृजी है ॥६॥ देस-प्रेम-पूरन को अरि-दल-चूरन काँ, मृगनि गुहारि मंत्र-माया किए देति है। कहै रतनाकर कृपान कुंत बान घालि, अरिनि निकाय काँ निकाया किए देति है । मुंड-हीन दीसत मलेच्छनि के मुड मुड, मानहु चतुंड प्रतिछाया किए देति है । देवी दुर्गावती दपेटि दुरगा ला दौरि, आसफ की सफ का सफाया किए देति है ॥७॥