पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५३८

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(१०) सुमति जानि देस-द्रोही भव-विभव विमोही ताहि, छत्री-कुल-कानि के महान मन माषी है। कहै रतनाकर अचेत दुरगावती लौं, हटकन दीन्हो ना त्रिदेव राखि साखी है । नैं कु पग बंचक के उन कौँ बढ़ावत ही, चंचा-नर समुझि तपंचा-वार नाखी है। देसवत मानि के बरेस-बत हु सौं परें, मारि पति सुमति सु नारि-पति राखी है ॥