पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५३९

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(११) वीर नारायण अमित उमंग जिय जंग जुरिबे की भरयौ, कढ़ि गढ़ सिंगर ते संगर मचायौ है। कहै रतनाकर पठान पँचहत्थनि के. मत्थनि पै आनि जम-जत्यनि नचाया है ।। पैठि अरि ब्यूह मैं अभिक्रम अनूह साधि, असि सौ हियै पै निज विक्रम खंचायौ है । बीर अभिमन्यु लौँ समन्यु रनधीर बीर, भारत मही मैं महाभारत मचायौ है ॥१॥ बीर बीरसिंह बीर-माता के सपूत धन्य, बीर अभिमन्यु लौं समर-पन कीन्ही है। कहै रतनाकर मलेच्छनि के ब्यूह पैठि, तच्छन अनूह महा नर-पन कीन्हा है। देस-हित नेमिनि स्वतंत्रता के प्रेमिनि कौं, आपनौ चरित्र दिब्य दरपन कीन्हौ है। तरपन कीन्हौ जननी को अरि-स्रोनित सौ, सीस का गिरीस-माल अरपन कीन्ही है ॥२॥