पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५४०

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(१२) श्री नीलदेवी मृतक पती की कटि-तट की कटारी खोलि, तोलि कर ताहि बोलि तोहि अपनाऊँ मैं कहै रतनाकर प्रतिज्ञा नीलदेवी करी, आर्य-महिला की महा महिमा दिखाऊँ मैं ॥ पति के वियोग हूँ साँ तेरी तृपा-सोग भारी, तात सती पाछै है सुपति-पद पाऊँ मैं । अबदुस्सरीफ-हिय स्रोनित को आज तोहि, पान पहिले ही निज पानि सौं कराऊँ मैं ॥१॥ अबदुस्सरीफ सौं हरीफ है सुजुद्ध जुर, कीरति तिहारी तो अबाध रहि जाइगी । भाष नीलदेवी सुत सील-रतनाकर साँ, भाजि बच्यो सा ता दीह दाध रहि जाइगी। प्यास रहि जाइगी असाध इहि खंजर की, भारत की त्रास हूँ अगाध रहि जाइगी। आधि रहि जाइगी मरे हूँ पै हमारे हिय , हाय मनहीं मैं मन-साध रहि जाइगी ॥२॥