पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५४१

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भारत की भव्य भामिनीनि की कहानी कल, मंडित करौं मैं म्लेच्छ-मुखनि वजीफा सी। कहै रतनाकर पुकारि नीलदेवी आज, करनी करौं जो जगै जग मैं लतीफा सी ॥ देस-प्रेम-प्रबल-प्रभाव दिव्य देखें सबै, करति कहा है एक अबला जईफा सी । दारि डारौं देखत ही देखत विद्यारि डारौं, अबदुस्सरीफ की सराफत सरीफा सी ॥३॥ ऐसौ नाच नाची नीलदेवी म्लेच्छ-मंडल मैं, मंडि नीच-मुंडनि पै मीच काँ नचायौ है । कहै रतनाकर अमोल गुनरूप तोलि, अबदुस्सरीफ लोल ललकि लुभायौ है । निकट बुलाइ कै विठाइ हुलसाइ हियें, मद-मतवारौ मद-पान हठ ठायौ है । ज्याँ ही चयौ चसक चखायौ ताहि कंजर सो, पंजर मैं त्यौँ ही पेसि खंजर खपायौ है ॥४॥ पेसि कै कटारी धरमारी के करे0 बीच, तारी दई तरकि तराक नीलदेवी ज्यौँ । कहै रतनाकर त्यौँ संग के हथ्यार धारि, कीन्ही चहुँवार बार दारु की जलेबी ज्यौं ।