पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५४६

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तोपचिनि मारि लोपि वार तोपखाननि की, भानन लगी ज्याँ अरि-पांति भाँति भाजी की। भाजी सिलेदारी घाटवारी सेन-रानी सबै, साजी ग्न-बाजी गई विचलि जयाजी की ॥५॥ कोटा की सराय सौं धधाइ कै फिरंगी-फौज, ग्वालियर-कोट पै लगाइ चोट चमकी । कहै रतनाकर समच्छ लच्छमी त्यौँ कढ़ि, सबल सवार-सेन-संग धाइ धमकी॥ काटि-काटि डाग्न लगी यौँ महि रुंड मुंड, पैठि अरि-मुंड में जमात मनौ जम की । घमकी जहाँ हाँ जहाँ संगर-घटारी घोर, बिज्जु की छटारी है तहाँ ही तहाँ तमकी ॥६॥ कहै रतनाकर जंग धाइ, ग्वालियर-कोट सौं सचोट सिंहनी सी कढ़ि, लच्छमी समच्छहीं विपच्छि-सेन भारी के। उमगि जुरी संग लै सवार गने करनी करारी के ॥ झारति कृपान फौज फारति फिरंगिनि की, दारति दरेरि दल जंगिनि हुनारी के । धधकत गोलनि के द्वंदर धंसी याँ जाति, घुसत समंदर ज्यों अंदर दवारी के ॥७॥