पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५४९

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झैलति तुफंग-तीर-वार सुकुमार अंग, आइ पति संग पैठि संगर मैं तमकी । कहै रतनाकर नवाब मालवा की ताब, रंचक रही न भई हीन सब हम की॥ बलगद बाजी पै बिराजि सेन-राजी साजि, घेरि मल्ल सूरज निसा मैं लोह-तमकी । धावत घुमाइ चमकावति दुधारा खग्ग, तारा मेदपाट का सितारा बनि चमकी ॥३॥