पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५५१

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(१) श्रीराधा-विनय जानत न पीर-हीन पीर पीर-वारनि की ताते तिन्हैं पीर-पाक रोचक चिखाइ दै। कहै रतनाकर प्रिया के नख-रेखनि सौं जन्म-कंडली मैं प्रेम-परख लिखाइ दै ।। सलिता दया की लली ललिता सुनी मैं कान प्रगट प्रमान ताको नैननि दिखाइ दै। सरल-सुभाइ स्वामिनी काँ समुझाइ टेक पैयाँ परौं नैकु मान करिबो सिखाइ दै ॥१॥