पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५६१

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याही ते इंकारत हुते ना हनुमान होति हलबल भारी तुम्है जन-रखवारी में। कहै रतनाकर पै आनन उदास चाहि लीनी थाहि बात जो न सकुचि उचारी मैं ॥ कर भुजडंडनि न फेरौ औ न हेरौ गदा • इतनौ बखेरौ ना हिमायत हमारी मैं । दतिमलि जाइ हैं बिपच्छिनि के पच्छ सबै तनक सरीखी तीखी ताकनि तिहारी मैं ॥१॥ एहौ हनुमान मान एतौ जो बढ़ायौ जग राखियै तो ध्यान आन-बान के निभाए को। कहै रतनाकर बिसारियै न कानि बर बिरद सँभारियै कृपाल के कहाए कौ ॥ और की न पौरि पै पठेयै मन छैयै यह आपही बनैये सब काज अपनाए को। फेरियै निगाह ना गुनाह हूँ किये पै लाख राखियै उछाह निज बाँह दै बसाए कौ ॥६॥ (८) श्रीज्वालामुखी-विनय ज्वाला-मुखी माइ दिब्य दरस तिहारौ पाइ भब्य भावना मैं इमि मति अनुरागी है। कहै रतनाकर दिवाकर दिया के यह लेसन कौँ मानहु असेस लव लागी है ॥