पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५९६

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रॉच्यौ रात जाग नींद सॉपि के हमारै भाग सो तौ सोध आप ही झपकि ठहि देत हैं । बाढ़े उहि प्यारी-मुख मंजुल सुधाकर सौं रस-रतनाकर की थाह थहि देत है ॥ पानिप के अमल अगार सुख सार लाइ उर दुसह दवारि दहि देत हैं । नैन बिन-बानी कहि कबिनि बखानी बात ये तो पर सकल कहानी कहि देत हैं ॥७९॥ २९-४-३२ दुख सुख रावरे हमारे है रहे हैं एक सारे भेद-भाव के पसारै दरे देत हैं। कहै रतनाकर तिहारे कजरारे ओंठ कालकूट नैननि हमारे धरे देत है ॥ जावक के दाग रहे जागि राव जो भाल सो तो मम अंतर अँगा” भरे देत हैं। कठिन करारे कुच उर जो तिहारे अरे हिय मैं हमारे सो दरारें करे देत हैं ॥८॥ १-५-३२ फाटि जात वसन हिये मैं लागि काँट जात कैसै डाँट आपने बिराने की बरैहैं हम । कहै रतनाकर त्यौँ सखिनि सहेलिनि के कूट-कालकूट-घुट घातक अँचैहै हम ॥