पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अब लौँ भई सो भई कव लौँ दई कै गई ननद जिठानी-सास-त्रास सिर सैहैं हम । लैहैं बर बेली चारु चटक चमेली चुनि सुमन गुलाब के न चुनन सिधैहैं हम ॥ ८१ ॥ ५-५-३२ कलित कलापी पन्नगेस मोती-मात मंजु खंजरीट कीर के सरीर जात जाने हैं। कहै रतनाकर बलाक कल कोकिल औ पारावत चारु चक्रवाक रुचि साने हैं। कोमल पुरैनि-पात सुढर मलिंद-पाँति केहरि करिंद हंस कविनि बखाने हैं। ढंग पसु पच्छिन के तेरै अंग अंगनि ज्याँ रंग मानहूँ मैं त्यौँ अमानवी समाने हैं ॥ ८२ ॥ सघन सुदेस केस-कलित-कलाप हेरि ललित अलाप के कलापी बहकत हैं। कहै रतनाकर तिहारी भ्रकुटी की सान देखि देखि कुसुम-कमान अहकत हैं । अधर बिलोकि कीर लोलुप अधीर होत बानी ढंग कान के कुरंग गहकत हैं। ठहकत भौंर भोर जात कुंज-कानन कौँ रैनि चाहि आनन चकोर चहकत हैं ॥८॥