पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/८५

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. जो साहस करि भे प्राचीन सत्व के बादी, औ थिर थापे काव्य-कला-सिद्धांत अनादी। जाका है यह बाक्य, महाकबि ऐसा सो हो, "उक्ति बिसेषो कब्बो, भाषा जाहो साहो ।" ऐसौ केसव ज्यौं पंडित त्यौही सुसीलवर, जैसो श्रेष्ठ कुलीन उदार चरित तैसौ धर, सुभग संसकृत बर साहित्य ज्ञान जेहि माही, प्रति कवि कौँ गुन मान, गर्व अपने का नाही ॥ ऐसा अबहिँ भयो हरिचंद मित्र कविता को, जाननिहारौ उचित पंथ अस्तुति निंदा की । छमासील चूकन पैं, औ तत्पर गुणग्राही, अतिसय निर्मल बुद्धि तथा हिय सुद्ध सदाही ॥* पै अब केते भए हाय इमि सत्यानासी, कबि औ जांचक रस-अनुभव सौँ दोऊ उदासी, सब्द अर्थ का ज्ञान कछु राखत उर माही, सक्ति, निपुनता औ अभ्यास लेसहू नाहीं ॥ .