पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/१०८

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१०४ रवीन्द्र कविता-कानन. ओरा ताहा सुन सदाइ ओरा ओरा सदा चले ओरा आछे दिवस रजनी नाचे, शिखछे काहार काछे ? चल चल् छल् छल् गाहिया चलछं जल । कार डाक बाहु तुल, कार कोल बोस दुल ? हसे करें लुटो पुरी, कोन् खान छुटो छुटा? सकलर मन तुषी आपनार मन खुशी।

आमी नदी कोथाय ताहार केहो सेथाय सेथा नाही सेथा पाहाड़ ताहार सादा सेथा थाके सुधु सेथाय सुधु तारे बोसे बोसे ताइ भाबी कोथा होते एला नाबी ! पाहाड़ स कौन खान, नाम कि केहई जान ? जेते पार तार काछ? मानुष कि कउ आछ ? नाही तरु नाही घास, पशु पाखीदर वास, शब्द किछु ना सुनी बोसे आछ महामान ! माथार उपर शुधु- बरफ करिछे धूधू राशि-राशि मघ जतो गरेर छलेर मतो। हिमेर मतन हावा, कर सदा आसा-जावा, सारा रात तारा गुली चेये देखे आंखीं खुली।