पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/१०९

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रवीन्द्र-कविता-कानन १०५ सुधु तारे भोरेर किरण एसे मुकुट पराय हेसे।

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सेई सेथा सेथा नदी कबे तदी कबे ताहार सेथाय केहइ सेथाय सेथाय ताइ नदी मने सबइ नीचे गाछ तारा तादेर तादेर पाखी तारा आड़ाल तादेर झुले तारा नील आकाशेर पाये, कोमल मेघेर गाये, सादा बरफेर वुके घुमाय स्वप्न - सुखे। मुखे तार रोद लेये आपनी उठिलो जेगे एकदा रोदेर बेला मने पड़े गेलो खेला, एका छिलो दिन राती छिलो ना ताहार साथी; कथा नाई कारो घरे; गान केह नाहीं करे। झुम झुम फिरि फिरि बाहिरिलो धिरी - धिरी भाबिलो जा आछे भवे देखिया लइते हबे पाहाड़ेर बुक जुड़े उठेछे आकाश फुड़े। बुड़ो बुड़ो तरु जतो, बयस के जाने कतो! खोपे-खोपे गाँठे गाँठे बासा बाँधे कुटो-काठे। डाल तुले कालो कालो करेछे रविर आलो। शाखाय जटार मतो पड़ेछे शेवला जतो। मिलाये मिलाये कांध ७