पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/११४

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रवीन्द्र-किवता-कानन - बच्चों के लिये ऊँचे भावों की साहित्यिक कविता भी बहुत अच्छी की जा सकती है, इसका आंखों देखा प्रमाण आपको इन पंक्तियों से मिल जायगा । एक दूसरी कविता पढ़िये । नाम है 'मास्टर बाबू' । यहाँ बच्चा खुद मास्टर की कुर्सी ग्रहण करता हैं । उसका छात्र है बिल्ली का बच्चा। बंगाल में एक कहानी बहुत प्रचलित है। किसी स्यार (मास्टर साहब) ने एक मदरसा खोला था । उसमें सैकड़ों झींगुर और कितने ही चौपाये-छपाये और सैकड़ों पैरवाले जीवों के बच्चे पढ़ने के लिये आते थे । अस्तु कहानी बहुत लम्बी-चौड़ी है, हम तो बिल्ली के बच्चे के पढ़ाने वाले मानव शिशु के मास्टर बनने का कारण मात्र बतलाना चाहते हैं । कहना न होगा कि बच्चे को वह प्रचलित कहानी सुन कर ही काल्टर बनने का शौक चर्राया था। बच्चा खुद भी पाठशाला जाता है, शायद पहली पुस्तक पढ़ चुका है, उसके पढ़ने के ढङ्ग यह बात प्रकट हो जाती है । उसने स्वयं जो पाठ याद किया है, वही बिल्ली के बच्चे को भी पढ़ाता है । हाँ, जिस स्यार ने पाठशाला खोली थी, उसने अपना नाम 'कनाई मास्टर' रखा था 1 इसीलिये बच्चा कहता है- "आमी आज कानाई मास्टर पड़ो मोर बेराल छानाटी, आमी ओके मारिने मा बेंत मिछि मिछि बसी निये काठी! रोज रोज देरी करे आसे, पड़ाते देय ना ओ तो मन, डान पा तुलिये तुले हाइ जतो आमी बोली सुन् सुन् । दिन-रात खेला खेला खेला, लेखाय पड़ाय भारी हेला। आमी बोली च छ ज झ ञ, ओ केवल बोले म्यों म्यों । प्रथम भागेर पाता खुले आमी ओरे बोझाई मा कतो चुरी करे खासने कखनो भागो होस गोपालेर मतो!