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रवीन्द्र-कविता-कानन
 

दौड़ा! जब मैं कहता हूँ—च छ ज झ ञ तब वह म्यों-म्यों कर के रह जाता है। मैं उससे बार-बार कहता हूँ पढ़ने के वक्त पढ़ा करो, जब छुट्टी हो जाय, तब खेलने के वक्त खेलना। भलेमानस की तरह बैठा रहता है तिरछी, निगाह करके मेरा मुँह ताकता है, ऐसा भाव बतलाता है जैसे उसका अर्थ सब समझता हो। जहाँ कहीं जरा-सा मौका मिला कि उड़ जाता है, बस फिर दर्शन ही नहीं।

कविवर रवीन्द्रनाथ ने बच्चों की भाषा में ऐसी कितनी ही कविताएँ लिखी हैं। पढ़ कर बच्चों के स्वभाव पर उनका विचित्र अधिकार देख मुग्ध हो जाना पड़ता है।