पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रवीन्द्र-कविता-कानन ११७ जानेना करिते साज- केश बेश तार होले एकाकार मने नाहीं माने लाज । (३) दिने शतवार भांगिया गड़िया, धूला दिये घर रचना करिया, भावे भने मने साधिछे आपन घर करनेर काज जाने ना करिते लाज । (४) कहे एरे गुरुजने ओजे तोर पति, ओ तोर देवता, भीत होये ताहा सुने । (५) केमन करिया पूजिवे तोमाय कोने मते ताहा भाविया ना पाय, खेला फेली कभू मने पड़े तार-- 'पालिवो पराण पणे जाहा कहे गुरु जने ।' (६) वासर शयन परे तोमार बाहुते बाधा रहिलेक अचेतन घुम भरे। (७) साड़ा नाही दय तोमार कथाय कतो शुभक्षण वृथा चलि जाय, जे हार ताहारे पराले से हार कोथाय खसिया पड़े वासक शयन परे । (८) सुधू दुदिने झड़े -दस दिक त्रास आधारिया आसे धरातले अम्बरे- तखन नयने घूम नाई आर, खेला धूला कोथा पड़े थाके तार, तोमारे सबले रहे आंकड़िया