पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/१२२

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रवीन्द्र कविता-कानन हिया काँपे थरे थरे- दुःख दिनेर झड़े। (8) ६-- मोरा मने करि भय तोमार चरणे अबोध जनेर अपराध पाछे हय । (१०) तुमी आपनार मने मने हासो एई देखितेई सूझी भाल बासो, खेला घर द्वारे दांडाइया आड़े किजे पाव परिचय, मोरा मिछे करि भय । (११) तुमी बुझियाछ मने, एक दिन एर खेला घुचे जाबे ओइ तव श्रीचरणे । (१२) साजिया यतने तोमारि लागिया वातायन तले रहिबे जागिया शतयुग करि मानिवे तखन क्षणेक अदर्शने, तुमी बुझियाछ मने । (१३) ओगो वर ओगो बधू, जान जान तुमी-धूलाय वसया ए बाला तोमार बधू । (१४) रतन आसन तुमी एरी तरे रेखेछो साजाये निर्जन घरे, सोनार पात्र भरिया रेखेछ नन्दन-वन-मधू ओगो वर ओगो बधू । (१५) अर्थः-ओ वर---ऐ दुलहा; ओ बहु ! यह बुद्धिहीन नई बालिका तुम्हारी बहू है (१) । तुम्हारी देह से लग कर आई हुई उदार हवा इसे कितने खेलों में डाल कर देर करा देती है कि क्या कहूँ (यहाँ वर के उदार भावों के कारण बालिका वधू के खेल में कोई बाधा नहीं पड़ती-जितनी देर तक उसका जी --