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रवीन्द्र-कविता-कानन
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को अपार सुख की प्राप्ति होती है। उन्हें ऐसा ही माधारण जीवन बिताना पड़ा था।

रवीन्द्रनाथ पढ़ने के लिये ओरियण्टल सेमीनरी में भर्ती किये गये। उस समय इनके स्कूल जाते हुए एक ऐसी ही घटना घटी। पहले इनके दो साथी उस स्कूल में भर्ती किये गये। वे इनसे उम्र में कुछ बड़े थे। उन्हें बग्घी पर चढ़ कर स्कूल जाते हुए और स्कूल से लौट कर बाहर के मनोरंजक दृश्यों का वर्णन करते हुए सुन कर रवीन्द्रनाथ की स्कूल जाने की बड़ी लालसा हुई। परन्तु इनकी उम्र उम समय बहुत थोड़ी थी। लोगों ने समझाया कि इस समय तो स्कूल जाने के लिये मचल रहे हो, परन्तु दो-चार दिन के बाद फिर जी चुराओगे। यह भय बालक रवीन्द्रनाथ को सत्याग्रह से विचलित न कर सका। आँसुओं के बल पर बालक की विजय हुई। दूसर दिन रवीन्द्रनाथ ओरियण्टल सेमीनरी में बच्चों की कक्षा में भर्ती कर दिये गये। यहाँ बच्चों पर जैसा शासन था, इससे रवीन्द्रनाथ को बहुत शोध यहाँ की पढ़ाई से जी छुड़ाना पड़ा।

ओरियण्टल सेमीनरी से बालक रवीन्द्रनाथ को नार्मल स्कूल में भर्ती कर दिया गया। उम्र इस समय भी इनकी बहुत थोड़ी ही थी। यहाँ दूसरी ही दिक्कत का सामना करना पड़ा। यहाँ बच्चों से अंग्रेजी में गाना गवाया जाता था। अंगरेजी थियोरियां और अंगरेजी गाने सिखलाये जाते थे। हिन्दुस्तानी बच्चों के गले में मज कर अंगरेजी गाने को ऐमी शकल बन गई थी कि उस पर इस समय के शब्द-तत्ववेताओं को पाठोद्धार के लिये विचार करना चाहिये। रवीन्द्रनाथ को इस समय भी उस गाने को एक लाइन न भूली।

"कलोकी पूलोकी सिंगल
मेलालिं मेलालिं मलालिं।"

इसके उद्धार के लिये रवीन्द्रनाथ को बड़ी भिनत उठानी पड़ी। फिर भी 'कलोकी' की सफल कल्पना नहीं कर सके। बाकी अंश का उन्होंने इस तरह उद्धार किया—'Full of glee, Singiny mcriils! Sin ing merrily!! Singin.; merrily!!!'

नार्मल स्कूल में विद्यार्थियों के सहवास को रवीन्द्र बाबू ने बहुत ही दूषित बतलाया है। जब लड़कों के जलपान की छुट्टी होती थी, उस समय नौकर के साथ बालक रवीन्द्रनाथ को एक कमरे में बन्द रहना पड़ता था। इस तरह