पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६
रवीन्द्र-कविता-कानन
 

बालकों के उत्पात से वे आत्मरक्षा करते थे। एक दिन वहाँ किसी शिक्षक ने अपशब्द कह दिये। तब से उनके प्रति बालक रवीन्द्रनाथ की अश्रद्धा हो गयी। फिर बालक ने उस शिक्षक के किसी प्रश्न का कभी उत्तर नहीं दिया।

रवीन्द्रनाथ ने सात ही वर्ष की उम्र में एक कविता पमार छन्द में लिखी थी। इसे पढ़ कर इनके घर वालों को बड़ी प्रसन्नता हुई। यह कविता रवीन्द्रनाथ ने अपने भानजे ज्योति स्वरूप से उत्साह पा कर लिखी थी। उम्र में वे इनसे बड़े थे, अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते थे। इनके बड़े भाई स्वर्गीय द्विजेन्द्रनाथ को यह कविता पढ़ कर बड़ा ही हर्ष हुआ। उन्होंने बहुतेरों को कविता दिखायी और एक दिन नेशनल पेपर के एडोटर नवगोपाल बाबू के आने पर उन्हें भी कविता सुनायी गयी। वर्तमान काल के समालोचकों की तरह अनुदार और जरा-सी सम्मति देने वालों की उस समय भी कमी न थी। नवगोपाल बाबू भी आखिर सम्पादक थे, गम्भीरतापूर्वक हँसे, दबे स्वरों में कहा—"हाँ, अच्छी तो है, जरा द्विरेफ खटकता है।" नवगोपाल बाबू कविता के मर्मज्ञ थे या नहीं, यह तो हम नहीं कह सकते, परन्तु इतना हमें मालूम है कि उनकी कविता-मर्मज्ञता के सम्बन्ध में उस समय के बालक रवीन्द्रनाथ के जो भाव थे वे अब तक भी नहीं बदल सके, न अब तक वह द्विरेफ शब्द रवीन्द्रनाथ को खटका।

बचपन में रवीन्द्रनाथ पर नौकरों का शासन रहता था। इन्हीं के बीच में वे पल रहे थे। रवीन्द्रनाथ के पिता उन दिनों पर्यटन कर रहे थे। अक्सर बाहर ही रहा करते थे। रवीन्द्रनाथ को माता की गोद पर पहली सीढ़ी के पार करने का सौभाग्य न मिला। माता उस समय रोग-ग्रस्त रहती थीं। रवीन्द्रनाथ की देख-रेख नौकरों द्वारा ही हुआ करती थी। बड़े घरों के लड़के बालपन में भोजन-वस्त्र का अभाव नहीं महसूस करते। यह बात रवीन्द्रनाथ के लिये न थी—भोजन और वस्त्र का सुख भोग उस समय इन्हें नहीं मिला। सुख उन्हें उनकी क्रीड़ाएं देती थीं। उन्हीं की छाया में वे प्रसन्न होते थे। दस वर्ष तक रवीन्द्रनाथ को मोजा भी नहीं मिला। जाड़े के दिनों में दो सादे कुर्ते पहन कर जाड़ा काटना पड़ता था। रवीन्द्र नाथ ने अपने बालपन को जिन शब्दों में याद किया है, उनसे वे हर एक पाठक की सहानुभूति आकर्षित कर लेते हैं। एक जगह उन्होंने लिखा है—"इस तरह के अभावों से मुझे कष्ट न था। परन्तु जब हमारे यहाँ का दर्जी इनायत खाँ कुर्ते में जैव लगाना भी अनावश्यक समझता था तब दुःख अवश्य होता था।" एक जोड़ा स्लीपरों से बालक को जूते