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रवीन्द्र-कविता-कानन
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साथ आभ्यन्तरिक मेल, उसका वैज्ञानिक कारण, वहाँ जाने पर समझ में आ गया। बर्फ का गिरना और दूर फैली हुई बर्फीली भूमि की शोभा भी वहाँ दृष्टिगोचर हो गयी। अस्तु विलायत पर लिखे गये रवीन्द्रनाथ के पत्र बड़े सरस हैं। यों भी रवीन्द्रनाथ बंगाल के पहले दर्जे के पत्र लेखक है। कभी-कभी बंगाल के पत्रों में इनको चिट्ठियाँ छपा करती थीं। विलायत से लौटने के कुछ ही दिनों के बाद 'मेघनाद-वध' काव्य पर इनकी एक प्रतिकूल समालोचना निकली। इस पैनी समालोचना पर अब ये हँसते है। कहते हैं, वह शक्ति की पहली अवस्था थी जब 'मेधनाद-वध' काव्य पर लिखी गयी मेरी समालोचना प्रकाशित हुई थी। उस समय मुझे यह ज्ञान न था कि मैं बगाल के अमर कवि की प्रतिकूल समालोचना लिख रहा हूँ।

इन्हीं दिना रवीन्द्रनाथ का 'करुणा' उपन्यास निकला। इस समय अक्सर कवि करुणा के पथिक हुआ करते हैं। संसार के दुख और दाह के चित्रों से उनकी पूर्ण सहानुभूति रहा करती है। 'भग्न हृदय' नामक इस समय की लिखी हुई एक दूसरी पुस्तक में ऐसे ही भावों का समावेश हुआ है। यह पद्य बद्ध नाटक है। यह रवीन्द्रनाथ की अठारह साल की उम्र में लिखा गया था। सोलहवें साल से तेइसव साल तक की रवीन्द्रनाथ की स्थिति बड़ी चंचल थी। कोई श्रृंखला तब न हो पायी थी। उद्देश्य सदा ही परिवर्तित होते रहते थे।

१८८१ से १८८७ तक का समय रवीन्द्रनाथ के लिये सच्चा साहित्यिक काल है। इस समय उनकी प्रतिभा पूर्ण रूप से विकसित हो गई थी। इसी समय उनकी 'सन्ध्या-संगीत' नामक कविता पुस्तक निकली थी। इसके निकलने के साथ ही, बङ्गाल भर मे रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा चमक उठी। उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों तक ने रवीन्द्रनाथ का लोहा मान लिया। कविता की दृष्टि से इनकी ये कविताएँ बड़े महत्व की हैं। उनमें एक विचित्र ढंग की नवीनता आ गयी है जो उस समय के कवियों और समालोचकों के लिये बिल्कुल एक नयी चीज थी। 'बाल्मीकि प्रतिमा' और 'काल-मृगया' दोनों ही संगीत-काव्य है। रवीन्द्रनाथ की नस-नस में धारा बह रही है। इनके अंगरेज समालोचक संगीत की दृष्टि से इन्हें बहुत ऊँचा स्थान देते हैं। उस स्थान के लिये ये योग्य भी हैं। भावों के अतिरिक्त इनके शब्दों में बड़ा जोर है और छन्दों का बहाव जैसा वे चाहे बिल्कुल वैसा ही है। भाषा, भाव ओर छन्दों पर इतना बड़ा अधिकार, इन पंक्तियो के लेखक को, और कहीं नहीं मिला। उस दिन रवीन्द्रनाथ पर दी