पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
रवीन्द्र-कविता-कानन
२३
 

है। इससे बढ़ कर उनका दूसरा दुःखान्त नाटक 'मायार खेला' निकला।

करवार से लौटने के पश्चात् रवीन्द्रनाथ की मानसिक स्थिति बदल गयी थी। अब पहले की तरह निराशा न थी। आदर्श विहीन जीवन को साहित्य का मजबूत आधार मिल गया था। प्रभात संगीत के निकलने के बाद से जीवन पूर्ण और हृदय दृढ़ हो गया था। साहित्य-लक्ष्य पर स्थित हो जाने के कारण, इधर वे लगातार लेखनी-संचालन करते गये। 'आलोचना' में उनके कई प्रबन्ध निकले। समालोचक, रवीन्द्रनाथ प्रथम श्रेणी के हैं। शब्दों को सजाने और सत्य को लापता करने वाले समालोचकों की तरह ये नहीं है। इनकी समालोचना चुभती हुई, यथार्थ ही सत्य को भाव और भाषा के भूषणों के साथ रखने वाली हुआ करती है। इसी समय, 'राजर्षि' नामक एक उपन्यास इनका लिखा हआ निकला। पीछे से यह नाटक में 'विसर्जन' के नाम से बदल दिया गया। यह उच्च कोटि का नाटक माना जाता है। इसके बाद, 'समालोचना', उनके प्रबन्धों का दूसरा खण्ड प्रकाशित हुआ। इन दिनों बंगाल में बंकिमचन्द्र की तूती बोलती थी। बड़े-बड़े साहित्यिक उनकी धाक मानते थे। उनके उपन्यासों का खूब प्रचार बढ़ रहा था। बंकिमचन्द्र की प्रतिभा की ओर रवीन्द्रनाथ भी आकृष्ट हुए। दोनों मे मित्रता हो गयी लेकिन कोई भी एक दूसरे के व्यक्तित्व को दबा नहीं सका। कुछ ही दिनों बाद मित्रता का परिणाम घोर प्रतिवाद हो गया। रवीन्द्रनाथ की 'हिन्दू-विवाह' पर दी गयी वक्तृता ने दोनों में विवाद ला खड़ा कर दिया। जिस पर रवीन्द्रनाथ के प्रयोग ज्यादा जोरदार जान पड़ते हैं, समय के खयाल से आदर्श अवश्य ही बंकिमचन्द्र का बड़ा था। यह १८८७ ई० का विवाद बड़े ऊँचे दर्जे का है। इसके अतिरिक्त १८८८ ई० में कई और कविताएँ लिख कर रवीन्द्रनाथ ने बालिका-विवाह की खबर ली है।

यौवन की पूरी हद तक पहुँचने के पहले ही रवीन्द्रनाथ का 'कडी ओ कोमल' पुस्तिकाकार निकला। उनके छन्द और संगीत के संबन्ध पर विचार करने वाले पश्चिमी समालोचकों की समझ में नहीं आया कि रवीन्द्रनाथ पर वास्तव में संगीत का प्रभाव अधिक है या छन्दो का। दोनो इस खूबी से परिस्फुर वार दिये जाते हैं कि समालोचकों की बुद्धि काम नहीं देती—वे जब जिसे देखते है तब उसे ही रवीन्द्रनाथ की श्रेष्ठ कारीगरी समझ लेते हैं। हमारे विचार से रवीन्द्रनाथ दोनों के सिद्ध कवि हैं। संगीत पर उनका जितना जबरदस्त अधिकार है उतना ही अधिकार छन्दों पर है।