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रवीन्द्र-कविता-कानन
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आपने अपने सुशिक्षित कुटुम्ब के लेखों के सहारे 'भारती' नाम की एक उच्च कोटि की साहित्यिक पत्रिका निकाली। आप ही उसके सम्पादक थे। यह पत्रिका बाद को आप ही की कुटुम्ब भुक्ता श्री सरलादेवी चौधुरानी के सम्पादकत्व में और इसके बाद अन्य कई प्रवीण साहित्यिकों के सम्पादकत्व में निकलती रही और आज भी निकल रही है। बङ्ग भाषा के सामयिक साहित्य में इस पत्र का बहुत ऊँचा स्थान सदा से रहा। इन दिनों आप बङ्गदर्शन, प्रवासी मावंच तथा विभिन्न पत्रों में अपनी उत्कृष्ट कहानियाँ, लेख और कविताएँ प्रकाशित कराया करते थे। आपकी इन कृतियों से समस्त बंगला में स्फूर्ति होती थी। लेखों में आपके विचार सर्वथा नये होते थे; अतएव कभी-कमी प्रवीण साहित्यिक, साहित्यिक रवीन्द्र की प्रतिभा की उपेक्षा करना चाहते थे और उसका विरोध भी कर बैठते थे। पर आपका तो उस समय साहित्यकार सिक्का जम रहा था। इसलिये उन विरोधों को किसी ने परवाह न की। रवीन्द्र द्वारा लिखित साहित्य दिन-दिन जनता का आदर प्राप्त करने लगा। रवीन्द्र बङ्गभाषा साहित्य के बहुत ऊँचे सिंहासन पर अधिष्ठित हो गये।

अपनी मातृभाषा की सेवा करते-करते ही रवीन्द्र की प्रतिभा ने और भी चमत्कार दिखाना चाहा। अंगरेजी भाषा पर आपका यथेष्ट आधिपत्य था। अतएव अब आपने अंगरेजी में भी अपनी कहानियाँ, लेख तथा कविताएँ लिखनी शुरू की। उनका प्रकाशन होते ही अंगरेजी पठित जनता में आपके अँगरेजी साहित्य में अवतरण करने का खूब स्वागत हुआ। फिर तो आप धारावाहिक रूप से बङ्गाल और अंगरेजी दोनों भाषाओं के पत्रों में अपने पुख्ता विचार भरे लेख प्रकाशित कराने लगें। इन लेखों ने अंगरेजी साहित्य पर अपनी धाक जमा दी। उससे ही अंगरेज आपका प्रतिभा और पाण्डित्य के कायल हो गये। अब रवीन्द्र को भला फुर्सत कहाँ? इंग्लैण्ड और अमेरिका के पत्रों ने रवीन्द्र के लेखों को 'माडर्न रीव्यु' आदि पत्रों से उद्धत कर अपने पत्रों की लोकप्रियता बढ़ायी। इसके बाद ही आपने अंगरेजी में अपनी चुनी हुई कहानियों का एक संग्रह किया, जो कि लण्डन के एक प्रसिद्ध पुस्तक-विक्रेता ने प्रकाशित कराया उसके प्रकाशित होने के साथ ही लाखों प्रतियाँ खप गयीं। संस्करण पर संस्करण हुए उसके। फिर तो आपने अपने कई उपन्यास भी अंगरेजी में अनुवाद कर प्रकाशित कराये और उनका अच्छा आदर हुआ।

रवीन्द्र बाब लार्ड मेकाले की शिक्षण-पद्धति के चिर-काल से विरोधी थे।