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रवीन्द्र-कविता-कानन
 

उसकी व्यर्थता का अनुभव आपको बहुत दिनों पूर्व हो चुका था। एम० ए० और बी० ए० डिगरीधारी अंगरेजी शिक्षण-पद्धति के चरम स्वर तक पहुँचे हुए विद्यार्थियों का उद्देश्य-हीन, स्वदेशीय भावहीन जीवन आपकी निगाहों में बहुत दिनों से खटकता था। अतएव अपने देश बालक और बालिकाओं को वास्तविक शिक्षा से शिक्षित करने वाले एक आदर्श शिक्षालय स्थापन की कल्पना आपके मस्तिष्क में बहुत दिनो से उठ रही थी। उसकी सिद्धि के लिए विलक्षण कार्य क्रमपूर्ण योजना का निर्माण कर आपने पहले उसे मित्रो, फिर सर्वसाधारण में उपस्थित किया। सभी ने उस योजना का हृदय से अनुमोदन किया और हर सम्भव प्रकार से सहायता भी प्रदान की। परिणाम यह हुआ कि रवीन्द्रनाथ लगन, कल्पना और कार्य-तत्परता ने अत्यन्त शीघ्र, प्राची विद्यापीठों के आदर्शपर शिक्षा के सर्वाङ्गों से पूर्ण एक शान्ति-निकेतन नाम का आश्रय 'बोलपुर' की पवित्र हरिद्भूमि में स्थापित कर दिया। स्वयं रवीन्द्र ही हुए उसके आचार्य, बङ्गाल के नहीं, भारत के—नहीं नहीं विश्व के विज्ञान से विचक्षरणी भूत विद्वान् हुए इसके अध्यापक और हुआ इसमें आदर्श शिक्षा आरम्भ। देवर्षि तुल्य ठाकुर द्विजेन्द्रनाथ इसके तत्वाध्यापक बन कर वही जीवन व्यतीत करने लगे। वे रवीन्द्र बाबू के बड़े भ्राता थे। इस युग के आदर्श तपस्वी थे। ज्ञान की अत्यन्त उच्च सीमा प्राप्त कर ली थी उन्होंने । इसका पाठ्यक्रम भी सर्वाङ्ग पूर्ण रखा गया। जिन्होंने इस संस्था को देखा है, उनका स्पष्ट मत है, भारत में इस जोड़ की दूसरी शिक्षण संस्था नहीं है। इसमें शिक्षा पाया हुआ विद्यार्थी सच्चा विद्वान हो जाता है। रवीन्द्र ने इसकी अविवृद्धि में गजब का परिश्रम किया है।

शान्तिनिकेतन की सुव्यवस्था कर साहित्यवती रवीन्द्र फिर अपने व्रत में लग गये। आपने इस बार कुछ अद्भुत भावपूर्ण क्षुद्र कविताएँ लिखनी आरंभ की। और इसी समय हुआ उनका विदेश-भ्रमण। इस भ्रमण में प्रकृति देवी का आपने अत्यन्त सूक्ष्म निरीक्षण किया। स्वाभाव के कितने ही नूतन भाव मालूम हुए उन्हें। आध्यात्मिक भावों के तो आप पहुँचे हुए प्रेमी ठहरे। इन सभी भावों और देश-विदेश के साहित्य अध्ययन तो अनुभव ने आपनी प्रतिभा का और भी विकास किया और इसके बाद जो लेखनी उठी, उसने तो कमाल ही कर दिया।

यह कमाल गीतांजलि हुई। गीतांजलि बङ्गाल की गीता बन गयी। घर-