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रवीन्द्र-कविता-कानन
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घर, कण्ठ-कण्ठ पर नृत्य करना शुरू किया उसने। रवीन्द्र के परम मित्र मिस्टर एण्ड्रूज ने भी सुना उसे। वह लोट पोट हो गया उसके भावों पर और उसने छाती ठोंक कर कहा संसार के सम्मुख कि विश्व-साहित्य भर में इस जोड़ा का ग्रन्थ नहीं निकलेगा। रबि बाबू को उसने गीतांजलि को अंगरेजी में लिखने के लिये प्रेरित किया। कवि की समझ में यह बात आ गई और जुट गये थे वे अंगरेजी गीतांजलि को लिखने में। पुस्तक पूरी हुई और सुन्दर प्रकाशन हुआ उसका। अंगरेजी साहित्य में निकलते हो तो एण्डू ज की वाणी सत्य हुई। तहलका मचा दिया अगरेजी साहित्य में उस ग्रन्थ रत्न ने। विश्वद्रष्टा की उस पर नजर गयी। उन्होंने उसे पढ़ा, अपनी कसौटी पर कसा और विशेष लक्षण युक्त पाया। पत्रों में उसकी चर्चा हुई। काव्य के मर्मज्ञों ने उसे विश्वसाहित्य का एक आभापूर्ण रत्न बताया और यूरोप की सबसे बड़ी साहित्यिक संस्था 'विज्ञान-कला-साहित्य-परिषद्' का ध्यान उस ओर आकृष्ट हुआ। परिषद् के सदस्यों ने रवि बाबू की गीतांजलि को देखा और उसे विश्वसाहित्य की 'सर्वतेष्ठ पुस्तक' करार देकर नोबिल प्राइज का आदर्श पुरस्कार पाने का हकदार बताया। परिषद् ने रवीन्द्र को एक लाख बीस हजार का सर्वविश्रुत पुरस्कार प्रदान किया और अपनी गुणग्राहकता से सिद्ध किया कि रवीन्द्र 'कवीन्द्र' है।

इस पुरस्कार को पाने से रवीन्द्र की अत्यधिक ख्याति हुई। गीतांजलि के संस्करण पर संस्करण और संसार की सभी श्रेष्ठ भाषाओ में उसके अनुवाद हुए। संसार एक भारतीय को उस अद्वितीय प्रतिभा को देख कर दंग रह गया। उसमें जो अद्भुत दार्शनिक तथा आध्यात्मिक भाव भरे हुए थे, उनके आगे सभी ने श्रद्धा के साथ अपने-अपने मस्तिष्क झुकाये।

इस विश्व-श्रद्धा को पाकर रवीन्द्र भारत के पूज्य महापुरुष प्रसिद्ध हुए। अमेरिका, जापान, चीन, जर्मनी, जिनेवा, इटली, फ्रांस और इङ्गलैड की राष्ट्रीय संस्थाओं ने कवीन्द्र को अपने यहाँ आने के लिए निमंत्रण दिये, जिनकी रक्षा रवि-बाबू ने क्रमशः कई बार यूरोप यात्रा करके की। चीन, जापान, अमेरिका, इटली और फ्रांस में रवीन्द्र बाबू ने वहां की प्रसिद्ध संस्थाओं में अपने दार्शनिक भाव भरे विचार काव्य-कुशल भाषा में व्याख्यान रूप में प्रकट किये। प्रत्येक संस्था, पर सुन्दर लेखों द्वारा अपने भावों का प्रकाशन किया और विश्व-प्रेम में आबद्ध होने के लिये सब राष्ट्रों के विद्वानों से अनुरोध किया।

आपकी इस विद्वत्ता पर विदेशी ही मुग्ध हुए हों, सो नहीं, भारत गवर्नमेंट