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रवीन्द्र-कविता-कानन
 

ने भी आपको नाइट या 'सर' तथा 'डि लिट्' जैसी सर्वोच्च उपाधियों से विभूषित किया।

रविबाबू जैसे कुशल साहित्य निर्माता हैं, वैसे ही उत्कृष्ट संगीतज्ञ और सफल अभिनेता भी हैं, आपने अपने लिखे नाटकों में प्रधान पात्रों का स्वयं पार्ट किया है। कलकत्ता, बोलपुर में हुई नाटकों में तो आपने अपनी नाटयकारिता का परिचय दिया ही है साथ ही यूरोप के विभिन्न देशों में भी आपने नाटक स्वयं खेले और उनमें यशप्रद अभिनय कर वहां की जनता को मुग्ध किया है।

इस सब बातों के अलावा कवि रवीन्द्रनाथ भारत के आदर्श समाज-सुधारक हैं। और वह सुधार आजकल के अन्यान्य सुधारकों की भाँति केवल सिद्धान्तों में ही सीमित नहीं है, आपके चरित्र और प्रत्येक कार्य में उसका निदर्शन मिलता है। आपका परिवार भी एक उत्कृष्ट सुधरा हुआ परिवार है। जैसी आपकी सुधार सम्बन्धी उचित है, वैसी ही आपकी कृति भी है। भारत के राजनीतिज्ञों मे—तेश देताओं में भी आपका एक खास स्थान है। स्वदेश-प्रेम के आप जीवन्त स्वरूप हैं। देशी प्रत्येक बड़ी-बड़ी समस्याओं में आपने सदा भाग लिया है और उन पर बड़ी निर्भीकता से अपने विचार प्रकट किये हैं। आपका यह स्वदेश-प्रेम केवल लेखों और व्याख्यानों तक ही रहा हो यह नहीं, परन्तु आपने उसके लिये अपूर्व स्वार्थ त्याग अपनी असीम निर्भीकता का भी परिचय दिया है।

सन् १९१८ के रालेक्ट एक्ट के विरुद्ध देश के संगठित सत्याग्रह की बात लोग भूले न होंगे। उस समय भारत की नौकर शाही ने पंजान में जो नर-संहार लीला की थी, वह उसके जीवनोतिहास की अत्यन्त कालिमा पूर्ण कथा है। रवि बाबू ने जिस दिन पंजाब के मार्शलला के अमानुषिक अत्याचारों की बात मुनी, उस समय आपके स्वदेश प्रेम प्लावित हृदय की बड़ी भारी चोट पहुँची। भारत की पश्चिमी दिशा की लगी हुई चोट का प्रत्यावात पूर्व दिशा को अनुभूत हुआ और खूब हुआ। रवि बाबू की देश-प्रेणता जागी। आपने बड़ी निर्भीकता से नौकरशाही के पंजाबी नृशंग अत्याचारों पर धोर घृणा प्रकट की, पुरजोर शब्दों में बड़ी निन्दा की और तत्काल सरकार की दी हुई 'नाइट' आदि की उपाधियाँ वाइसराय के पास लौटा कर अपने अनुपम सहयोग का परिचय दिया। उस दिन भारत में जाना कि रविबाबू में आवश्यकता पड़ने पर अनुपम स्वार्थ त्याग कर दिखाने योग्य भी आत्मबल है।