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स्वदेश-प्रेम

कवियों का हृदय स्वभावतः बड़ा कोमल होता है। वे दूसरों के साथ सहानुभूति करते-करते इतने कोमल हो जाते हैं कि किसी भी चित्र की छाया उनके हृदय में ज्यों की त्यों पड़ जाती है, उन्हें इसके लिये कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता। यह उनका स्वाभाविक धर्म ही बन जाता है। सांसारिक व्यवहार में जितने प्रकार के विकारों की सृष्टि हो सकती है उनकी संख्या ९ से अभी तक अधिक नहीं हो पाई। इन्हीं ९ प्रकार के विकारों का विश्लेषण करके साहित्य में ९ रसों की सृष्टि की गई है। इन नव रसों के नायक कवि वही होते हैं जो इस रसायनशास्त्र के पारदर्शी कहलाते हैं। नव रसों के समझने और उन्हें उनके यथार्थ रूप में दर्शाने की शक्ति जिसमें जितनी ज्यादा है, वह उतना ही बड़ा कवि है। जिस समय से देश पराधीनता के पिंजड़े में वन-विहंगम की तरह बन्द कर दिया गया है, उस समय से कर आज तक की उसकी अवस्था का दर्शन, उससे सहानुभूति, उसकी अवस्था का प्रकटीकरण आदि उसके सम्बन्ध के जितने काम हैं, इनकी सीमा कवि-कर्म की परिधि के भीतर ही समझी जाती है। क्योंकि, प्रकृति का यथार्थ अध्ययन करने वाला कवि हो यदि देश की दशा का अध्ययन न करेगा तो फिर करेगा कौन?—लल्लू बजाज और मैकू महतो?

महाकवि रवीन्द्रनाथ ने केवल दूसरे विषयों की उत्तमोत्तम कविताओं की रचना में ही अपना सम्पूर्ण काल नहीं बिताया, उन्होंने देश के सम्बन्ध में भी