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महाकवि का संकल्प

महाकवि रवीन्द्रनाथ की कविताओं का एक भाग अलग है। उसमें कुछ कविताएँ 'संकल्प' के नाम से एकत्र की गई हैं। इन कविताओं में एक विचित्र सौंदर्य है। सावन की सिंची लताओं की तरह इनकी सुकुमार आभा महाकवि के मनोरम काव्योद्यान की और शोभा बढ़ाती हैं। इनसे उनके पल्लवित काव्य-कुंजों में एक दूसरी ही श्री आ गई है। महाकवि के संकल्प के रूप में जो भाव आये हैं, उनसे उनकी सुकुमार कल्पना-प्रियता के साथ उनकी कोमल भावनाओं की यथेष्ट सूचना मिलती है।

कवि के संकल्प के जानने की आवश्यकता भी है । वह क्या चाहता है उसका उद्देश्य क्या है। वह अपने जीवन का प्रवाह किस ओर बहा ले जाना चाहता है, उसकी भावनाओं में किसी खास भाव की अधिकता क्यों हुई? ये सब बातें हमें अच्छी तरह तभी मालूम हो सकती हैं जब कवि स्वयं उनमें अपनी कवित्व-कला की ज्योति भरे और आइने से भी साफ, इतिहास से भी सरल करके रखे।

महाकवि का संकल्प क्या है, यह उन्हीं के मुख से सुनिये—

"संसार सबाइ जबे साराक्षण शत कर्मे रत
तुइ सुधू छिन्नबाधा पलातक बालकेर मत
मध्याह्न माठेर माझे एकाकी विषण्ण तरुच्छाये
दूर-वनगन्धवह मन्दगति क्लान्त लप्त वाये