पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/८९

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रवीन्द्र-कविता-कानन आह्वान ! कथा, आह्वान ! आबार चलिनु फिरे बहि क्लान्त नत शिरे तोमार बलो तबे कि बाजाबो फूल दिये कि साजाबो तव द्वारे आज, रक्त दिये कि लिखिबो, प्राण दिये कि सिखिबो कि करिबो काज? यदि आंखी पड़े ढुले; क्लान्त हस्त यदि भूले पूर्व निपुणता, पक्षे नाहीं पाई बल, चक्षे यदि आसे जल बंधे जाय चेयोना को घृणा भरे करोना को अनादरे मोर अपमान, मने रेखो, हे निदये, मेनेछिनु असमये तोमार सेवक आमार मत रयछे सहस्त्र शत तोमार ताहारा पेयेछे छटी, घुमाये सकले जुटी पथेर दुधारे। सुधू आमि तोरे सेवी विदाय पाइते देवी डाक क्षणे क्षणे; बेछे निल आमारेई दुःसह सौभाग्य सेई प्राणपणे ! सेई गरे जागि रब, सारा रात्रि द्वारे तव अनिद्र नयान, सेई गर्वे कण्ठे मम वहि वरमाल्य सम तोमार आह्वान !" (अगर इस तरह बुलाना ही तुम्हारा उद्देश्य है, तो यह लो, मेरा सब कुछ, मेरा निर्जन यहीं रहा; मेरा शाम के दिये का उजाला, मेरी रास्ते पर लगी हुई दोनों आँखें, मेरे बड़े प्रयत्न की गुंथी हुई माला, सब कुछ रहा । घर लौटे आदमियों को ले कर, उस पार के गांव में, खेवा जा रहा है तो जाय, दुआरे बहि 1 .