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प्रकाशकीय
 
रवीन्द्र-कविता-कानन
 
 विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के काव्य की यह विस्तृत समीक्षा आज से

लगभग अर्द्ध शताब्दी पूर्व हिन्दी के युग-प्रवर्तक कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने की थी। तब ही इस कृति का अपूर्व स्वागत हुआ था लेकिन यह महान कृति बरसों से अप्रकाशित रही और पाठकों को इसके रसास्वादन से वंचित रहना पड़ा।

निराला जी के सुपुत्र पं० रामकृष्ण त्रिपाठी ने रुपापूर्वक इसके प्रकाशन की अनुमति प्रदान करके में इस कृति को प्रकाश में लाने का सौभाग्य दिया ।

इस कृति का पढ़ कर पाठक देखेंगे कि निराला जी की आलोचक दृष्टि कितनी पैनी और निष्पक्ष थी । किसी मौलिक रचनाकार का आलोचक होना बहुत स्वाभाविक नहीं है । परन्तु निराला जी में आलोचक को भी विशेषताएं थी यह इस कृति से प्रत्यक्ष है।

इस रचना से निराला जी - सर्वथा एक भिन्न रूप में पाठकों का परिचय होगा।

पद्मधर मालवीय