पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/९४

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रवीन्द्र-कविता-फानन तरह कावता करने की कुशलता) भूल जाय-आँखों में आँसू भर आये तो ऐ निर्दये, मेरा अपमान न करना, बल्कि यह याद करना कि मैंने असमय में भी तुम्हारा आह्वान स्वीकार कर लिया था।' यही इस कविता की बुनियाद है, परन्तु कितनी मजबूत है, पाठक स्वयं पढ़ कर देखें। इस कविता के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं कि यह एक वह कृति है जो साहित्य को अमर कर रही है। संकल्प-समूह में 'भैरवी गान' पर महाकवि की एक कविता है । यह भी साहित्य की एक अमूल्य सम्पत्ति है । महाकवि कहते हैं- "ओगो के तुमि बसिया उदास मूरति विषाद-शान्त शोभाते ! ओई भैरवी आर गेयोनाको एई प्रभाते !! मोर गृहछाड़ा एई पथिक पराण तरुण हृदय लोभाते ।" (विषाद के द्वारा इस शांत हुई शोभा में बैठी ओ उदास मूर्ति तुम कौन हो ? घर से निकले हुए मेरे इन पथिक प्रारणों के तरुण को लुभाने के लिये इस प्रभात में वह भैरवी अब न गाओ।) "ओई. मन-उदासीन, ओई आशाहीन ओई भाषा हीन काकली देय व्याकुल परशे सकल जीवन बिकली। देय चरणे बांधिया प्रेम-बाहु घेरा अथ - कोमल शिकली। हाय मिछे मने हथे जीवनेर व्रत मिछे मने हय सकली।" (वह मन को उदास कर देने वाली,—बिना आशा की, बिना भाषा की, तान, अपने व्याकुल स्पर्श के साथ मेरे सम्पूर्ण जीवन को विकल कर देती है। वह मेरे पैरों में प्रेम को बाँहों से घिरी आँसुओं से कोमल जंजीर डाल देती है । हाय ! उस समय तो फिर जीवन के सम्पूर्ण व्रत झूठे जान पड़ते हैं-सब मिथ्या प्रतीत होते हैं।) कहीं कुछ नहीं है, भैरवी रागिनी की वर्णना है । उसकी बिना भाषा को