पृष्ठ:रसकलस.djvu/३१८

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आलंबन विभाग नायिका जिस सुन्दरी स्त्री को अवलोकन कर हृदय में शृंगार रस का सचार होता है उम रूपलावण्यवती युवती को नायिका कहते हैं । यथा- कवित्त- दीठ के पर ते गात-मंजुता मलिन होति देखे अंग दलकहि दल सतदल के। कोमल कमल सेजहूँ पै ना लहति कल भारी लगै वसन अमोल मलमल के। 'हरिऔध' हरा पहिराये वपु-कंप होत पायन मैं गडहिं बिछौने मखमल के। कुसुम छुये ते रंग हाथन को मैलो होत छिपत छपाकर छबीली-छवि छलके ||१|| अमल धवल चारु चाँदनी सरदवारी आनन-उजास आगे लागति कपट सीं। आतप की धापहूँ ते तन कुँभिलान लागै देखि छवि नीकी जाति रतिहूँ रपट सी। 'हरिऔध' कोमलता ऐसी कामिनी की अहै पखुरी-गुलाब गात आवति उपट सी। नूतन प्रसून लौ सुरंग अंग-अंग दीखै कढ़त सरीर सौ सुगंध की लपट सी॥ चकित चिते के चाव चौगुनो बढ़ाइ चौंकि चित अनुमानि लाल भूल्यो चैन सुख है ।