पृष्ठ:रसकलस.djvu/३१९

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उसकलस 190 चलि कत चरचा करै री चारुता को चूकि सची चेरी वाकी चारुता के सनमुख है। 'हरिऔध' चाँदनी लौं हास चख झख के से चलन अमोल चामीकर लौं बपुख है। चपला सी चमक चितौन है चकोर जैसी चंपा लौं बरन चारु चंद्रमा सो मुख है ।।३।। कोमल कलित करि-कर लौं सु-कर नीके कामिनी के परम प्रमोद उर पारे देत । दीपति-बलित-दंत पॉति की दुगूनी दुति दंभवारे दारिम को उदर विदारे देत । 'हरिऔध' बॉके बड़े बान से विखीले नैन बारिजातहूँ को बर बरन बिगारे देत । गहब गुलाव से गुलफवारी कामिनी को मंद - मद गमन गयंद - मद गारे देत ॥४॥ सवैया- कौन कथा मृग मीन की है किन दारिम दाख की बात कही है। किन्नर नाग नरादि के नारिन की 'हरिऔध' जू कौन सही है। रूप तिहारो निहारि कै राधिके देव बधून की देह दही है। भाजि हिमाचल मैं गिरिजा वसी इंदिरा सागर बीच रही है ।।५।। शिख-नख-वर्णन शीश दोहा मिलत निरखि या सीस ते नव रस की बकसीस । मादर सीस नवाद को देव न सदा असीस ॥१॥