सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रसकलस.djvu/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रसकलस ७८ पलक नयनन के दोहा- अदल बदलि बाटन गन अनुमानत निज मान । पल-पल तुलत मनहिं लखत पलकन के पलरान ॥१॥ पल-पल उठहिं गिरहिं परहि थिरता भूलि गहूँ न । ललकन परत पलकनहू नहिं चैन ॥२॥ वरुणी प्रनलगेहुँ अनगन जनन अकुलावति चहुँ ओक । वरु नीकी बरछी अनी नहिं वरुनी की नोक ।।१।। के सिंगार चॉटे जुरे कै वरुनी विवि - नैन । के कमलन कॉटे लगे के ए साँटे - मैन ।' अरी चुभावति कत रहति सूची मो हिय मॉहिं। बाम तिहारी बरुनि को वरु निहारिहौ नॉहि ॥३।। सूची तरुनी वरुनि में जोरे डोरे नैन दरजी मैन सियत रहत प्रेम - वसन दिन - रैन ॥४|| बरुनी - वरनन मैं करत कत इतनो चित गौर । जग - बिजयिनि अखियान पै दुरत देखियत चौर (शा वरुनीवारी पलक में न्यारी अंखिया नाहिं। के जोर परे मैन पीजरे मॉहि ॥६॥ नेत्र-तिल - वजन दोहा- नेज-विहीन विनाफियत मलिन रूप श्री रंग। ॥ तिल कैमे तुलि नकर्हि नैन - तिलन के मंग ।।२।।