पृष्ठ:रसकलस.djvu/३५४

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१०५ नायिका के भेद विधवा - विलाप ते विकल बसुधा है होति विबुध - समाज को विबुधता न भाव है। 'हरिऔध' लोक - सेविका को कल कैसे परै काल की करालता न काहि कलपावै है। लोने - लोने - लालन मैं लहति लुनाई नाहि लालना - ललाम मैं ललामता न पावै है ॥१॥ कल - कानि - कलित-कुलीन खग-कुल कॉहि बाल है बचावति कलेस - लेस - लासा ते । विदलित - मानव को दलन निवारति है दलति रहति दिल - दहल दिलासा ते। 'हरिऔध' दुख अनुभवति दुखित देखि जीतति है दॉव भाव-पूत- ते उपवास करति बिलोकि उपवासित को बनति पिपासित पिपासित-पिपासा - ते ॥२॥ -प्रेम - पासा रूखी - रूखी - बातन ते रुख बदलति नाहि रूखी ना परति है रुखाई देखि रूखे की। खोवति न साख सीख देति है. सखीन को सुखी ना रहति सूखी नसै देखि सूखे की। 'हरिऔध' खूखापन काहि अखरत नाहि खूखी है वनति मृठी वात सुनि खूखे की। दुखित को करि के अदूखित सुखित होति भूखित न होति वाल भूख देखि भूखे की ॥३॥ सेवा सेवनीय की करित सेविका समान सेवन औ सेवनीयता ते सॅवरति है। २२