पृष्ठ:रसकलस.djvu/३६६

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नायिका के भेद = १-धीरा नारी-विलाससूचक चिह्नों को देख कर धैर्य के साथ सादर कोप प्रकाश करने- वाली नायिका को घीरा कहते हैं, उसके दो भेद हैं-मल्याधीरा और प्रौढाधीरा।। मध्याधीरा सादर व्यग वचन द्वारा रोष प्रकट करनेवाली मध्याधीरा कहलाती है। उदाहरण कवित्त- मिलि मिलि मोद-वारी मुकुलित मल्लिका सो कुंज कुंज क्यारिन कलोल करि फूले हो। पान के प्रकाम - रस आम - मंजरीनहूँ के उर - अभिराम को अराम उनमूले हो । 'हरिऔध' ठौर ठौर झौरि झुकि झूमि मृमि चूमि चूमि कंज की कलीन को कबूले हो। तजि महमही-मंजु - मालती - चमेलिन को कौन भ्रम वेलिन मॅवर आज भूले हो ।। १ ।। सवैया- चौगुनी चंचलता हुँ किये हमैं चाव ही सो चुप लै रहनो है । औगुन की बतियानहूँ मैं 'हरिऔध' सदा गुन ही गहनो है। भाव तिहारे भलेई अहैं हमैं भूलि न भौर कळू कहनो है। फेरी करौ के करो जिनि तेरी सरोजिनि को सव ही सहनो है ।।२।। प्रौढाधीरा प्रकट में मान का कोई भाव न दिखलाकर संयोग-समय उदासीनता ग्रहण करनेवाली नायिका प्रौढाधीरा कहलाती है। हैं।